भाजपा (NDA) को तमिलनाडु में पच्चीस सीट ???


400 के आकड़े पर तो नहीं, पर तमिलनाडु में दहाई पर भारतीय जनता पार्टी के आने की सुगबुगाहट तमिलनाडु में आंचलिक कस्बों में हैं, वहाँ उत्तर की तरह सट्टा बाजार भी नहीं, और अपनी-अपनी ढपली, अपनी ही राग के बेतहाशा यूटूबर भी नहीं।
फरवरी में यकायक 15 से अधिक पूर्व विधायकों का भाजपा में आना, कोई आहट थी। तमिलनाडु का राजनेता दूरदर्शी होता हैं, वो बादलों को देख जोत लगाने में माहिर हैं, भाजपा वैसे भी अपने खुद के 04 विधायकों को भी अच्छे से प्रस्तुत कर सकी हैं।

अभी तमिलनाडु विधानसभा में भाजपा के चार विधायक अलग-अलग लोकसभा क्षेत्र से हैं, मोडक्कूरिची - इरोड से श्रीमती डॉ.श्रीसरस्वती, कोयम्बटूर दक्षिण से डॉ. वनाथी श्रीनिवासन, तिरुनरवेल्ली से नयनार नगेन्द्र जो लोकसभा उम्मीदवार भी हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता नागरकोईल-कन्याकुमारी से माविलई रामासामी गाँधी।

वैसे तमिलनाडु के इतिहास में पहली बार कोई मजबूत विपक्ष न होना भी भाजपा की जमीन तैयार करने को काफी थी, जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु में विपक्ष सा रहा नहीं, उनके ही दल के दोनों गुट के नेताओं के पास अपना कोई मजबूत जनाधार नहीं है, यह फैक्टर थोड़ा भी चला तो यहाँ बीस के पार का आकड़ा भी, अन्य छोटे-छोटे दलों के जरिये भाजपा आएगी ही।

अतिशयोक्ति नहीं, पूर्व में भाजपा 3 लोकसभा सीट जीत ही चुकी हैं। इस बार पूर्व मुख्यमन्त्री पनीरसेल्वम -रामनाथपुरम (पिछले चुनाव में भाजपा का मत 32 प्रतिशत, रामसेतु और श्रीलंका का टापू अहम् मुद्दे ), अन्ना मक्कल के टीटीवी दिनकरन -थेनी, तमिलमनीला कांग्रेस के विजयासीलन -थूथुकुडी (पिछले चुनाव में भाजपा का मत 22 प्रतिशत), वर्तमान सांसद व पीएनके नेता ऐ सी षणमुगम-वेल्लूर (उनका दावा हैं की एनडीए को तीस सीट मिलेगी), आइजेके पार्टी के टीआर परिवेन्द्र -पेरम्बलूर, टीएमसी से पी विजयकुमार-इरोड और वीएन वेणुगोपाल –श्रीपेरुम्बुदुर से भाजपा के सहयोग से चुनाव में हैं, इसके अलावा डॉ. देवनाथन यादव -शिवगंगा (पिछले चुनाव में भाजपा का मत 22 प्रतिशत), प्रो. रमा श्रीनिवासन -मदुरै (राम मन्दिर का असर, स्थानीय कार्यकर्ता एसजी सूर्या की गिरफ़्तारी), श्रीमती राधिका शरदकुमार -विरुधुनगर (तमिलसंगम), पोन राधाकृष्णन -कन्याकुमारी (दो बार भाजपा जीत चुकी है), एल मुरुगन -नीलगिरि (ऊटी), तमिलसाई सौंदर्यन -चेन्नई दक्षिण, विनोज पी सेल्वम -चेन्नई दक्षिण, अन्नामलाई- कोयम्बटूर, सी नरसिम्हन -कृष्णागिरी, नयनार नगेन्द्र- तिरुनरवेल्ली इन स्थानों पर विश्वास मुद्रा में हैं, तो सहयोगी पीएमके के टीआर बालू -अरक्कोणम, पूर्व केन्द्रीय मन्त्री अम्बुमणि रामदास की पत्नी सौम्या अम्बुमणि -धर्मपुरी, ज्योति वैंकटेशन- काँचीपुरम, एन अन्नादुरै- सेलम, मुरलीशंकर -वेल्लुपुरम, गणेश कुमार- अरणी, एपी मुरुगानन्दम- त्रिप्पुर, एम मुरुगानन्दम -तंजावुर और थांगी बचन-कुडलूर अपनी लोकप्रियता, स्थानीय चुनावों में अपने वोट बैंक के बदौलत बड़ा करने की जुगत में हैं, इसके अतिरिक्त केन्द्रशासित प्रदेश में ए नमशिवायम -पाण्डिचेरी से बहुत आगे हैं।
(भाजपा (एनडीए) पच्चीस)

इस राज्य में विशेष रुच होने का कारण यह भी हैं की वर्ष 2014 में काफी समय के लिए तमिलनाडु एवं कर्नाटका में रहने का अवसर मिला, तमिल मेरी अपनी पांच भाषाओं में हैं। थोड़ा कुछ तमिल-संस्कृत समानता पर कार्य भी किया, जिसको 1920 से बाद लगातार दूर करने के प्रयास जो थे असफल होने थे, पर सफल हुए। उलटे संस्कृत-तमिल में कौन जेष्ठ-श्रेष्ठ? जैसे प्रश्न भी हुए। 

विडम्बना तो देखियें, तमिल को 2004 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए गया, वही दुनिया की अर्वाचीन भाषा संस्कृत को उसके बाद 2005 में उसके बाद क्रमशः 2008 में कन्नड़, तेलुगु, 2013 में मलयालम और 2014 में ओड़िया का यह स्थान मिला, चर्चा अव्वल कौन? यह नहीं पर सरकार में आये लोगों की मूढ़ता की हैं की कैसे-कैसे कुत्सित प्रयासों में दिल्ली लगी रहीं।संस्कृत की गुणवत्ता, उसका प्रतिपदा भाव तो विश्वजनीन हैं। तमिल का प्राचीनतम संगम साहित्य 2500 वर्ष पूर्व का हैं, उसके भी लगभग 50 वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य संस्कृत के ग्रंथो गीता, उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र की व्याख्या कर रहे थे। 

अस्तु, विषय तमिलनाडु को जानने का था, ऊपर चेन्नई से पूरा केरला सीमाई क्षेत्र, या कर्नाटका, कुछ-कुछ तब के आंध्र के सीमावर्ती स्थिति में यह राज्य वृहद ही नहीं, आपसी भाषा-संस्कृति की विभिन्नता में बहुत सहज नहीं हैं, इसीलिए स्थानीय राजनेता उत्तर-दक्षिण, तमिल-हिन्दी, पेरियार, दलित सब मुद्दों को उठाते हैं ताकि वे विषय जो स्थानीय दृष्टि से गम्भीर हैं, सामने आये ही नहीं या गौण बना दिए जाएँ।
भौगोलिक दृष्टि से चेन्नई का राजधानी होना? वहां के मानचित्र से समझा जा सकता हैं, सही विकास के पैमाने को देखें तो पाण्डिचेरी की प्रासंगिकता भी समझ से परे नज़र आएगी। या फिर ऐसा हो की चेन्नई, पाण्डिचेरी, कोयम्बटूर, मदुरै चार राजधानियों के साथ नए राज्य आकार लें, जिससे कोई भी पिछड़ा हिस्सा रहे ही क्यों?? हालाँकि इस चर्चा को, राजनेता अपने हिस्सें से बँटवारा मानते हुए, जनता को बरगलाने में पीछे होंगे?

यही माँग तो 1962 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री नेहरू से पेरियार और अन्ना ने भी की थी, कुछ नेहरू-कामराज की अपनी सत्ता के काबिज होने के कारण और शेष चीन युद्ध के कारण बात आगे न बढ़ सकी। और अब फिर मांग आने लगी की पांड्यनाडु और पल्लवनाडु उत्तर-दक्षिण दो राज्य हो।

अस्तु, तमिलनाडु सभी 39 सीटों पर मतदान हो चूका हैं, भाजपा केवल खाता नहीं, दहाई तक जाने को आतुर थी, पर वो अब हक़ीक़त की ओर संकेत दे रहा हैं। भाजपा 23 सीट पर खुद, वह बाकि स्थान पतली मक्कल कच्ची (PMK) 10 स्थानों पर, तमिल मनिला कांग्रेस 03 (TMC-Moopanar) और दो TTV दिनकरन की अम्मा मक्कल मुनेत्र कडगम (AIADMK) और एक पर ओ पन्नीरसेल्वम निर्दलीय होने पर भी एनडीए उसको समर्थन दे रहा हैं, तीन और दल भी हैं वे भाजपा के कमल पर चुनाव क्षेत्र में हैं जो पुथिया निधि कच्ची (PNK), इण्डिया जननायग कच्ची (IJK) और द तमिझगा मक्का मुनेत्र कडगम (TMKMK) हैं।

इंडि गठबन्धन को लें तो, द्रविड मुनेत्र कडगम (DMK) 21 तो कांग्रेस 09, शेष में दो-दो सीपीआई, सीपीएम, वीसीके, एक-एक MDMK, KDMK, IUML को और कमल हासन की MNM केवल समर्थक की मुद्रा में हैं। 

तीसरे गठबन्धन में जयललिता के बाद दल को संभाल रहें EK पलानीसामी की पार्टी AIADMK, 34 स्थानों पर, तीन PT, SDPI के उम्मीदवार AIADMK के चिन्ह पर तो AIMIM सहयोगी की भूमिका भर और DMDK को 05 स्थान। पिछले चुनाव में भाजपा AIADMK के साथ था, और कुल एक थेनी सीट AIADMK को मिली, शेष सब DMK के हिस्से यूपीए को मिली। 

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने पदयात्रा निकालकर पार्टी का जनाधार स्वतंत्र रूप बनाने की कवायद की तो, हालांकि प्रभारी के नाम से आयें दर्जनों लोगो को समझने में वक़्त जाय हुआ भी तो भी एन मन, एन मक्कल (मेरी जमीन, मेरे लोग) मिशन सफल होता है, तो द्रविड़नाडु की पॉलिटिक्स में बड़ा उलटफेर हो सकता है।


दिक्कत यही थी की जो जमीनी तौर पर न जुड़े थे, वे इस राजनैतिक परिपक्वता के मतदाताओं को समझ नहीं सकते, उनका हिन्दी क्षेत्र का ज्ञान कारगर हो ही नहीं सकता था, बेशक राम मन्दिंर और कश्मीर में लोगो की जिज्ञासा थी, पर इन सबके बीच अन्नामलाई अमित शाह को पृथक से साधने में सफल हुए, परिणाम आने को हैं, पर भाजपा अब तमिलियन की जुबा पर चढ़ चुकी हैं।

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