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सरहद के उस पार

 इसे विभाजन की बुनियाद कहूँ? पर बुनियाद, बुनियादी शिक्षा ये शब्द तो सकारात्मक परिवर्तन के लिए सुने हैं,  जब भी, जहाँ भी निहितार्थ तो यही थे। इसे षड्यन्त्र भी कैसे कहें कोई भी वाद अन्तराष्ट्रीय न्यायालय, स्थानीय भारत-पाक में भी लम्बित नहीं है। दुनिया का सबसे विनाशक विभाजन, लाखों लोगों की जान गयी, इतनी  संख्या में धर्म-परिवर्तन और अनगिनत मकान, तोड़े, जलाएं-कब्जायें गए, कोई भी शिकायत नहीं? देश विभाजन और तमाम हिंसा-आगजनी में सहमति, संधि-समझौते की तकरीर? विभाजन किसने स्वीकारा? जिन्ना ने की नेहरू ने? या वो भी तस्तरी में परोसी आज़ादी सा था, जिसमें पहले सी तय कर दिया गया था की कौन क्या उठायेगा, भले ही दोनों ही असहमत रहें हो? विभाजन के बाद के जिन्ना के कृतित्व को देखें तो नज़र आएगा की इससे सबसे ज्यादा दुःखी वह ही थे, या कहें वो केवल नज़रबंद भर थे, फ़र्क़ केवल इतना था की वो शाहजहाँ न थे, न औरंगजेब ही उधर।  पर ऐसा सुना है की इतिहास पुनः दुहराया गया, फ़र्क़ नाम का ही था, हुआ वहीँ। दोनों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखेंगे तो लाहौर-ढाका नज़र आएगा, इसलिए अडवाणी जी का जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष कहना अता

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