साधना स्वरूप कोटि






















भारतीय युवा संसद के उत्तर-पूर्व त्रिपुरा सत्र की सम्पन्नता से लौटते हुए, एक अवसर जो परंपरा-संस्कृति-प्रकृति सबके समवेत सायुज्य का आत्मीय क्षण।

पढ़ा हुआ शब्दसमूह, लिखे हुऐ स्मरण पत्र, प्रत्यक्ष देखकर, अपनी क्षमताओं का विकास निसंदेह आपको प्रायोगिकी जीवन से जोड़ता है।

शिवशक्ति के सायुज्य का अँचल त्रिपुरा, उत्तर में शिव और दक्षिण में शक्ति का केंद्र है, धर्मनगर के समीपस्थ अम्बासा और वही है-उनाकोटी।

ऐसी मान्यता है कि कैलास-मानसरोवर से वाराणसी की यात्रा प्रवास में यह प्रकृति की उपत्यका भोलेबाबा का विश्राम स्थल है, एक भक्त से भी स्थानीय मान्यताओं में जुड़ाव बताया जाता है।
मेरे अपने नाम का शब्दिक अर्थ है, जो अर्थ देता है, जल्दी प्रसन्नता के साथ जुड़ा है।

एक भक्त ने साधना स्वरूप कोटि अर्थात करोड़ शिव प्रस्तर निर्माण का संकल्प किया, अनुष्ठान सतत चला भी, पूर्णाहुति से पूर्व साधक को अभिमान हो गया कि वह तो स्वयं में निर्माता है, यह भाव उनकी पूर्णता मे बाधक रहा और संकल्पित कोटि में एक संख्या कम रही, उनाकोटी स्थान का नाम पड़ा, हालांकि सुस्थिर शिव ने साधक के आग्रह को मान, इस स्थान को मध्य विश्राम के रूप में स्वीकारा।

प्रसन्न होने पर सदाशिव, बनारस जाते समय यहां रुके थे, और तभी से इस स्थान की ख्याति हो गयी और इस अरण्य क्षेत्र का नाम उनाकोटि पड़ गया।

उनाकोटि में पहाड़ों की चट्टानों पर बनाए गए नक्काशी के शिल्प और पत्थर की मूर्तियां हैं।जिसका आधार भगवान शिव और गणेश जी हैं। 30 फुट ऊंचे शिव की विशालतम छवि खड़ी चट्टान पर उकेरी गई है, जिसे ‘उनाकोटिस्वर काल भैरव’ कहा जाता है। इसके सिर को 10 फीट तक के लंबे बालों के रूप में उकेरा गया है।

समीपस्थ ही देवी दुर्गा, मकर पर सवार देवी गंगा,नंदी बैल की जमीन पर आधी उकेरे हुए शिल्प, चार-भुजाओं वाले गणेशजी की दुर्लभ नक्काशी के एक तरफ तीन दांत वाले साराभुजा गणेश और चार दांत वाले अष्टभुजा गणेशजी, साथ ही तीन आंखों वाला एक शिल्प भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह भगवान सूर्य या विष्णु भगवान के हैं।

चतुर्मुख शिवलिंग, नांदी, नरसिम्हा, श्रीराम, रावण, हनुमान, और अन्य अनेक देवी-देवताओं के शिल्प और मूर्तियां भी यहां बनी हुई है। पहाड़ों से गिरते हुए सुंदर सोते उनाकोटि के तल में एक कुंड को भरते हैं, जिसे ‘सीता कुंड’ कहा जाता हैं। आज संक्रान्ति अवसर पर आचमन का अवसर प्राप्त कर मुझे प्रकृति से जुड़ने का अवसर मिले, अवसर की उपलब्धता न होने पर भी केवल जिजीविषा के लिए चलने की जिद्द यह सब साकार कर देती है।

आज मकर संक्रान्ति के अवसर पर वहाँ जाना, जीवन का एक नया अनुभव था, आगे की ट्रेन की जल्दी के बाबजूद कुछ क्षण के ही सही, वहां जाना उस इतिहास को वर्तमान के नज़रिए से देखना था, जो भूतभावन आशुतोष की उस प्रतीति को पुष्ट करता है, जिसमें सनातन कहता है-सदाशिवसमारंभ।

उनाकोटि पर भारतीय इतिहास के मध्यकाल के पाला-युग के शिव पंथ का प्रभाव है। इस पुरातात्विक महत्व के स्थल के आसपास तांत्रिक, शक्ति, और हठ योगी जैसे कई अन्य संप्रदायों का प्रभाव भी देखने को मिलता है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) के अनुसार, उनाकोटि का काल 8वीं या 9वीं शताब्दी है, इस पर समन्वित अनुसंधान की मांग महती आवश्यकता है, ताकि भारतीय सभ्यता के लुप्त अध्याय के रहस्य को उजागर किया जा सके।

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