एकदा लद्दाखे - सहज जीवन का हिस्सा


नैमिषारण्य ही क्यों, खासकर जब, तबकी आपकी यात्रा का प्रसंग, किसी ओर स्थान-समय-वातावरण से जुड़ा हो। हो सकता है की आपने पहले भी पढ़ा-सुना होगा, तो भी हर एक के जीवन के अनुभव कुछ अलग होते है। मौलिकता को ले तो वस्तुतः यह सब वर्णमाला का क्रमांतरण ही तो है, कुछ वैसे ही जैसे शोर को क्रमबद्ध करते है तो वह कर्णप्रिय संगीत बन जाता है।

पद-पद पर आस्था-विश्वास-प्रसन्नता प्रत्यक्ष होती है, यहाँ के तो साईन बोर्ड भी आपको एहसास करवाते रहते है- आप लद्दाख में है, मुस्कराइयें। लद्दाख का जर्रा-जर्रा अपने आपमें रहस्य-अजूबा-अनन्त कहानियों का केन्द्र है, अब इस चित्र को लेकर भी कई भाव हो सकते है, पर जब इसको जिया जाता है, तो स्वतः ही मानवीयता का पुट ह्रदय से आता है।

अपनी लद्दाख यात्रा के दौरान कई से वाकयों में, इसे शामिल करते हुए, एक वह प्रसंग जो हमारे-आपके आम जीवन में होता-गुजरता है, वैसा सा ही जब, यात्रा में मेरे साथ-आपके साथ चलता रहता है, उसे किस्सों-कहानियों के जरिये उकेरते हुए हम यह-सब पीढ़ियों को हस्तांतरित करते रहते हैं।

एक पांच साल की बालिका, अपने तीन साल के भाई को उठाकर के, बड़ी मुश्किल से उठा पा रही थी, इसे आप #Thiksey #Shey #Suspol #Alchi #Liktse #Lamayuru #Nyoma #leh #Nubra #turtuk #sisterbrother #sistergirl  कहीं का मान लें, कुछ घटनायें याद होती है, जगह, उसके किरदार तब उतने महत्वपूर्ण नहीं होते जब, उसका सन्देश भविष्य की प्रेरणा बन जाता है, तो।

लेकिन उठा करके एक छोटी सी पहाड़ी चढ़ रही थी।
मैंने उससे पूछा - तुझे, थकान नहीं लगती?
उसने क्या जबाब दिया ?
उसने कहा- यह तो मेरा भाई है।
मैंने फिर पूछा- नहीं, नहीं मैं तुम्हे नहीं पूछ रहा की कौन है?
मैं पूछ रहा हूँ की - तुम्हे थकान नहीं लग रही क्या ?
तो उसने कहा- यह तो मेरा भाई है।
तो मैंने फिर से कहा- अरे ! मैं तुम्हे यह नहीं पूछ रहा हूँ। की कौन है?
मेरा तो यह कहना है की तुम्हे थकान नहीं लगती?
तीसरी बार उसने कहा- अरे! मेरा भाई है।
तो मैंने कहा- की मैं जो सवाल......... .
तो उसने बीच में ही टोकते हुए कहा की - मैं सवाल समझती हूँ, मेरा भाई है, इसलिए मुझे थकान नहीं लगती।

भाव, सारांश है- जब आत्मीयता हो, स्नेह सम्मान की दृष्टि हो, जो भार केवल उत्साह-उमंग-ख़ुशी और सहज जीवन का हिस्सा भर रह जाता है। इसलिए भारतीय युवा संसद का ध्येय वाक्य कहता है- सं वो मनांसि जानतां, हम साथ चलें, साथ समवेत स्वर में बोले, और इस तरह एक दूसरे के मन को जाने, जो अच्छा है, उसको स्वीकारें, जो हे है उसको त्यागे, और श्रेष्ठ मानव धर्म की प्रतिष्ठापना में योग, अवदान दें।


(Pic by- Rapchen Ufc)


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