ऐसा की याद भी आएगा ........


























कालिदास, उनका पढ़ा मेघदूत से सार्थक वास्तविक सा लग रहा था। तो क्या वे भी किसी हवाई जहाज़ या की तब कोई प्रचलित पुष्पक, या उस सरीका या कोई उड़न तश्तरी की सैर पर गए थे।


यांच्या मोघा वरमधिको यकायक तो नही निकला होगा, दुनिया तो उन्होंने भी देखी थी, भर्तहरी का रे रे चातक भी तो वही कुछ कहते रहे।तो फिर, याचना नही अब रण होगा, जीवन जय या मरण होगा भर है, रश्मि रथ में दिनकर तो कृष्ण के माध्यम से महाभारत को रोकने का अन्तिम क्षण तक प्रयास करते है।


अस्तु, साहित्य है ही ऐसा की याद भी आएगा, और मेघ से चातक, रेगिस्तान से कब घनाभूत सश्यशामला आ जायेगा, सब क्षण भंगुर सा। फिलहाल जयपुर से निकल गुवाहाटी पहुंच गए है, अनाउंसमेंट हो चुका है।


असली सफर तो अब से ही शुरू होगा, ये दो घण्टे की आसानी जितनी थी, उतनी ही आगे की दिक्कतें, समाधान खोजते भारतीय युवा संसद लेह सत्र की मुस्तेदी को आगामी त्रिपुरा के उत्तरपूर्व सत्र में कायम करेंगा, ही।


संवाद की सिलसिला हो आसां, सब कुछ थोड़ा थोड़ा इसलिए ही तो है। और हां लगे हाथ एयरपोर्ट पर उत्कीर्ण महापुरुष को स्मरण भी संक्षित योगदान भी आपको समर्पित...


 गोपीनाथ बोरदोलोई एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और असम राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। इन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। इन्हें ‘आधुनिक असम का निर्माता’ भी कहा गया है। देश की स्वतंत्रता के बाद उन्होने तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ मिलकर कार्य किया। उनके प्रयत्नों के कारण ही असम चीन और पूर्व पाकिस्तान से बच के भारत का हिस्सा बन पाया। उस समय के तमाम नेताओं की तरह, गोपीनाथ बोरदोलोई भी गांधीजी के ‘अहिंसा’ की नीति के पुजारी थे। उन्होंने जीवनपर्यान्त असम और वहां के लोगों के लिए कार्य किया। वह प्रगतिवादी विचारों वाले व्यक्ति थे और जीवनभर असम के आधुनिकीकरण का प्रयास करते रहे। प्रदेश के प्रति उनकी निष्ठा को देखते हुए उनको सम्मानपूर्वक ‘लोकप्रिय’ नाम दिया गया।




(Guwahati Visit Oct., 2018)

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