अच्युता सामंता कौन बनेगा करोड़पति के बहाने





यह शिक्षा क्षेत्रे का दूसरा दौर था, यूँ तो 2001 में शिक्षा स्नातक कर चूका था। तब तक राजस्थान विश्वविद्यालय से ही पीजी भी हो चुकी थी। 2005 से 2008 तक हर बार लॉ-एलएलबी में प्रवेश हेतु फॉर्म भर रहा था, पर बाबजूद एडमिशन लिस्ट में नाम के हर बार अनिर्णय में ही रहा, पर आखिर 2008 में एक मक़सद के साथ लॉ कॉलेज इवनिंग में प्रवेश लिया, 2008-2011 के इस कार्यकाल में पुनश्च विश्वविद्यालय में आकर बहुत कुछ सीखा, सिखाया, पढ़ाई सहित अन्य गतिविधियों में सहभाग किया और करवाया भी।

यात्रा प्रवास भी खूब किया, अकेले इस सांयकालीन केन्द्र से उस दौरान 15 से 25 तक विभिन्न टूर्नामेंट्स में टीमें भेजी, मूट कौर्ट को औपचारिकता के दायरे से बाहर निकाला, मॉक पार्लियामेण्ट की गतिविधि को गति दी, "द लॉ स्कॉलर" के नाम से त्रैमासिक जर्नल का प्रकाशन भी किया, उसके लिए यूजीसी ग्रान्ट का प्रोविजन भी करवाया, हालांकि इस बात से प्रशासन ख़फ़ा ही रहा, जितना कुछ हो सकें नुक़सान भी किया, आप तौर पर तब भी और अब भी ऐसे बहुत से शिक्षक है जो अपना बदला निकलने को विद्यार्थियों को फ़ैल करने से भी बाज नहीं आते थे, हैं, कुछ और भी आगे रहते थे है जो पुलिस-मुकदमें तक का इस्तेमाल अपना ईगो शान्त करने को भी प्रयोग में लाते है।

ख़ैर, अभी तो फोटो के प्रसङ्ग की ओर रुख करते है, चूँकि ऊपर के बिना इसको बताना मेरे लिए आसान नहीं था। साल 2011 के जनवरी में बार काउन्सिल ऑफ़ इंडिया की पहल पर तब इंटरनेशनल मूट कोर्ट का आयोजन तय कीट (कलिङ्गा औद्योगिकी तकनिकी संस्थान) भुवनेश्वर, ओडिशा में तय हुआ, अपने यहाँ की भी टीम बनाई, मॉर्निंग कॉलेज और फाईप ईयर लॉ के भी कुछ छात्रों को सूचना दी, वे मिलें तो भुवनेश्वर के स्टेशन पर ही।

अंग्रेजियत की इस लॉ स्पर्द्धा में जो होना था वो तो पहले ही दिन पता लग गया, पर अवसर मिला तो सिखने की कोशिस जरूर की, मेमोरियल के मामले में हम अव्वल थे, सामने थी पटना यूनिविर्सिटी, साथ के दोनों साथी ही अंग्रेजी के नाम पर, चुप्पी की जिद्द में जा चुके थे, टीम स्पर्द्धा में एक केवल जूझता है, आगे भी मौका तो मिला, पर सब अपने से ही निर्णीत था।

चार दिन की इस सम्पूर्णता में, चिल्का झील-कोणार्क-जगन्नाथ क्षेत्र-योगिनी मन्दिर-मुक्तेश्वर और लिङ्गराज मन्दिर जाने का भारतीय स्थापत्य के अद्भुत शिल्प के देखने का अवसर भी मिला।आयोजन पूर्णता की ओर था, आयोजक-यजमान लगातार तलाशते रहने बाद भी, उनकी यात्रा के कारण नहीं बना। पर, आज समापन में वे होंगे यह तय था। सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस अल्तमस क़बीर, जस्टिस पटनायक की गरिमामय उपस्थिति में उनसे मिलना और भी मुश्किल हो गया। पर तब ही पहली बार उनकी सादगी को देखा, पुरे आयोजन में वे मञ्च की बजाय, उसके सामने की पंक्ति में थे, सारा आयोजन सम्बन्धित लॉ स्कूल के स्टूडेंट्स के हाथ ही था, केवल मंच संचालन में कुछ प्रोफ़ेसर की सहभागिता के अतिरिक्त।

बाद में मालूम चला की अतिथियों को लेन -लेजाने से लेकर अन्य तमाम कार्य में केवल और केवल विद्यार्थी ही है, इतना सब सहज भाव से छात्रों को सौपने का, अपने यहाँ तो ऐसी कल्पना भी नहीं हो सकती।

समापन के उपरान्त यकायक वो भीड़ से इतर सहज भाव से हमारी ही ओर अग्रसर थे, जीतू भाई इस भूमिका को निर्वहन कर चुके थे, जितेन्द्र चौधरी जो जोधपुर से है, उनके अतिरिक्त भी तक़रीबन बीसेक राजस्थानी प्रवासी विद्यार्थियों के साथ रहने का इन दौरान अवसर था।

अच्युता सामंता अब हमारे साथ थे, किस (कलिङ्गा समाज-शास्त्र संस्थान ) से लेकर अन्य तमाम मुद्दे चलें, अवसर की अनुकूलता को देख उनको "द लॉ स्कॉलर" दिया तो वे हर्षित हुए, तुरन्त अपने रजिस्ट्रार को बुला, ऐसी स्टूडेंट गतिविधि को वे तत्पर देखें, तब से वहां भी जर्नल शुरू हुआ। उनका तब भी यहीं कहना था की कोई भी जरूरतमन्द बालक, जो शिक्षा को लेकर आतुर हो आप उसको भुवनेश्वर भेज सकते है।

मंजुल, गौरव, विवेक चौधरी, जीशान,अरविन्द कासनिया, घनश्याम पंचारिया, कुणाल गोढ़वानी, तबरेज़ मालावत, विकास चौधरी, विनीत शर्मा, आशुतोष मिश्रा, अन्य सब भी साथ थे, सबको वे गले लगाने से नहीं चुकें।

डॉ. अच्युत इस काम को शुरू करने की प्रेरणा पर भी चर्चा करते हैं. उन्होंने बताया कि चार साल की उम्र में जब एक रेल दुर्घटना में उनके पिता की मौत हो गई तब उनके घर में गरीबी छा गई। बचपन में उन्होंने जिस गरीबी के कारण लोगों को जिंदगी से लड़ते देखा है, वैसे लोगों के लिए वे कुछ करना चाहते थे।

वे लोगों को शिक्षा गरीबी से लड़ने वाले एक हथियार के रूप में देना चाहते हैं। उड़ीसा के कलाराबंका के रहने वाले सामंत ने कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस शुरु कर उड़ीसा के आदिवासी बच्चों को रहने खाने से लेकर हेल्थ केयर और एजुकेशन फ्री में मुहैया कराई, जो अतुलनीय कार्य है। आज उनके इस संस्थान में तीस से चालीस हज़ार विद्यार्थी आवासीय है, जिनका स्वास्थ्य-शिक्षा-भविष्य सभी कुछ सामंत की चिन्ता का, कार्य का विषय है। उनको वो भोजन मिलता है तो अब भी हमसे दूर है, बाबजूद इसके की हम घर पर है, अपेक्षाकृत समृद्ध है।

तब से अब तक कई बार उनसे बात हुई, आजकल वे भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा के सदस्य भी है, पिछले अगरतला सत्र और उसके बाद जयपुर सत्र में उनको बुलाने की बात हुए थी, भारतीय युवा संसद को लेकर वो प्रोत्साहित भी करते है, परन्तु स्लिप डिस्क की समस्या से वो पिछले 6-8 महीने से बैड रेस्ट पर ही थे। कौन बनेगा करोड़पति में उनको देख, मन प्रफुल्लित हुआ, और उनको सलाम करने को लेखन को उद्यत भी।

साधारण नहीं अति पिछड़े परिवार से निकल कर, उन्होंने जो दुनिया बनाई है, वो 2011 में देखी है, कोई सुनी-सुनाई कहता है, मैं कहता हूँ आखँ देखी कबीर भी तो यही कहते है। मैं कोई प्रशंसा के उद्देश्य से नहीं कह रहा, जो वहां पढ़े है आप खुद उनसे रूबरू हो जाईये, सर्वांगीण विकास का संस्थान, आप अपने नौनिहाल के लिए ढूंढ रहे है तो वो भुवनेश्वर है।

शिक्षा, सामाजिक दायित्व, अध्ययन के अवसर, अवसरों को प्रोत्साहन, खेलकूद के तमाम संसाधन, बृहद पुस्तकालय, प्रवेश के साथ ही लेपटॉप, स्वयं का हॉस्पिटल, हॉस्टल आदि-आदि जो कुछ आप सोच सकते है, जाकर देखकर खुद से निर्णय ले सकते है। और इन सब के बीच जो जो कीट से आता है, वो कीस को जाता है। प्रवेश हेतु पालक को लाये अभिभावक भी जब सब कुछ जानते है तो वे अनिवार्य नहीं स्वैच्छिक डोनेशन करते है, सामंत की उस कृति को, जो समाजहित को तत्पर है, लोकहितं मम करणीयं।

2020 को आहूत भारतीय युवा संसद में वे हमारे बीच रहेंगे, जयपुर को उनको करीब से सुनने-जानने को मिलेगा, ईश्वर से यहीं कामना की उनको बरक़त दें, लम्बी उम्र दें, शतं जीवेम शरद:।

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