वह उठी लहर कि ढह गये, किले बिखर बिखर



दीपावली की गौधूलि के बाद का समय है, आये यह भी-आये वो भी, पर न जोशीले युवा, प्रतिबध्द बुजुर्ग थे साथ, न भीड़-जो केवल भीड़ वो भी। अब से पहले ये-वे जो भी इस दिन आता था तो हूजूम चलता था, एक साल भी तो नहीं हुआ, सब कुछ इतनी जल्दी बदला की नीरज याद आयें-
हो सका न कुछ मगर
शाम बन गई सहर
वह उठी लहर कि ढह गये
किले बिखर बिखर, और ............ देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!


पिछले विधानसभा चुनाव को लें तो आम जनता ने जातिवाद को न केवल नकारा, अपितु हाशिये पर ला खड़ा किया। पर यह क्या? विधायकी मिलते ही वे लोग? अब, जनता ठगा सा महसूस करने लगी है। शेखावाटी के अघोषित राजधानी लक्ष्मणगढ की बात करूंगा, यूं तो तीसरी बार विधायकी हासिल, हाल-फिलहाल मन्त्री भी है, कब तक रहेंगे ?वो दीगर बात है, राजनीति के पद भी क्रिकेट की माफ़िक़ होते है, कब छक्के को जाती गेंद कैच में तब्दील हो जाये, इसमें क़यास नहीं चलते।

रिटायरमेंट से पहले धोनी सुर्खियों में है तो इसलिए कि उनमें दम-खम बचा है, अपनी शेखावाटी में खंडेला जी हो या प्रदेश की तेल की राजधानी के गुढामलानी जी, फ़िर दिग्गज बनेंगे ही। बात बुडानिया जी की रीटा जी की भी, शेखावाटी का अबकी बारी परिवर्तन, कईयों की टिकटों के भी लाले लाने वाला है। अपने पुराने विधायक जाति से नहीं नाम से परसरामजी भी अब सचिवालय में आ रहे है - स्वागत की तैयारी कीजिये, राजपूत राजनीति भी करवट ले रहीं है।

लक्ष्मणगढ में अबकी मुकाबला रणवा-महरिया-शेखावत में होगा, बहुजन समाज अब नई शुरुआत की मुद्रा में है, कोई भी किसी एक से बंधा नहीं है, एक साल भी कहाँ हुआ, दलालों की भी इस बार विदाई हो चली है। तमाम महकमों में तहसील से वोट देने के बाद भी ज़िला दरबदर लोग, अबकी माफी की मुद्रा में नहीं, चार साल में वापिस राज़ी करने की कोशिशें अपने सौमित्रदुर्ग में नाकामयाब हुई है, इतिहास से वर्तमान तक, एमएलए इन वेटिंग तक से आप पूछ सकते है, हार का आंकड़ा यूं ही दहाई से सैकड़ा-हज़ार थोड़ी न हुआ है।
भक्तगण, अपनी निष्ठा की बनायें रखे और यह जानते हुए कि विकास मंच अब भी कायम है, आपका दोष नहीं यह नशा है, अब इशांत शर्मा की ही लीजिए क्रिकेट की उपलब्धि कि लोग चर्चा कम कर रहे है, बैकग्राउंड के आशाराम के लेकर ट्रोल अधिक हो रहे हैं। नगरपालिका के चैयरमैन की दावेदारी की फेरहिस्त में रोज एकाध नाम बढ़ते जा रहें है और सब ही भाग्य के भरोसे है, बिना मरे स्वर्ग मिल जाये बस,…… इतना सा ख़्वाब है।
पहले शहर और ग्रामीण क्षेत्र का अन्तर था, वह भी फतेहपुर की कावड़ घटना के बाद से निरन्तर कम होता जा रहा है, अपने ………जी को सबसे ज्यादा विरोध का सामना अपनी बिरादरी-ढाणियों का उठाना पड़ा था, वो तो शहर के वे लोग, जो उनके नाम का झण्डा लेकर, अब तक के अंतर को हज़ारों से सैकड़े में ले आएं, यह उनके लिए अफ़सोस हि है, वे ट्रांसफार्मर की चपेट में आ गए।
राम करें ऐसा हो जाये
मेरी निन्दिया तोहे मिल जाएं
और, और
हम वेवफ़ा हरगिज़ न थे
पर हम वफ़ा करना सके,
पर, साब वक़्त बदल गया है यह आपके बचपन का गाना था, हमने तो सुना था, क्योंकि तब तक एक गाल के बाद दूसरा गाल आगे करने की बात लाज़मी सी नहीं रही थी सो अब ट्रांजिस्टर में सुनने को मिला......
तूने कदर न जाना,
अनमोल चाहतों का
खाया है मैंने धोखा,
तुझसे मोहब्बतों का
अल्लाह करे ये धोखा,
तू भी किसी से खाये
तुझे भूलना तो चाहा,
लेकिन भुला न पाए
और साब, आप तो वैसे ही दो पाटन के बीच फंसे हो-
दासकबिरा कह चलें।।
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोई।।
जादूगरी हो या पायलटगिरी दोनों में ही रिस्क है, एक ऊपर से गिराता है और दूसरा पुनर्मुषको भव:।
दोनों कहानी भी सुना देता हूं, चार और एक उनका खेवनहार, विमान की यात्रा में। कहते हैं कि सब अलग-अलग जाति के लोग थे, हरियाणा में सरकार से गठबंधन सा। मैं तो विज्ञान को ज्यादा जानता नहीं क्योंकि बचपन से संस्कृत पढ़ी, जीवन मे पत्रकारिता हावी रहीं, कानून में मास्टरी की अब इन सब में सूत्र-फार्मूले उलझन सी ही बने रहें।
खैर, पायलट जी ने कहा कि लेटिटिट्यूड-लोंगिटयूएड और कुछ और टेक्निकल शब्दजाल, सो वजन कम करना होगा, नहीं तो विमान क्रैश होने की पूरी संभावना है, अब कौन शहादत दें? अपनी जान बचाने की ख़ातिर, आखिर उन चारों को सुरक्षित उतारने के बहाने रस्सी से लटका दिया। उनको कहा कि टेंशन में न आएं, मैं हूँ ना (??)। और कुछ किस्से-चुटकले सुनाता गया, इसी दौरान बोल पड़ा कि तुम्हारे चेहरे पर टेंशन क्यों? वो बोले नहीं, सर-साब!!! तो इधर से इशारा हुआ, अबकी चुटकला अच्छा लगे तो ताली की नज़ीर पेश हो, ताली एक ही सुनी, फिर तो न खजूर मिला न पानी, सब राम-राम….।

अब चलते है जानने की, जादूगरी क्या चीज़ है। निदा फ़ाज़ली की कलम को जुबाँ दी जगजीत जी ने, अक्सर बहुत से लोग सोते वक्त ग़ज़ल सुनते है, शब्दों को प्रसंग से जोड़े और फिर आगे की कहानी-जादूगरी का आनन्द-
उनसे नज़रें क्या मिलीं, रौशन फिज़ाएँ हो गयीं
आज जाना प्यार की, जादूगरी क्या चीज़ है
इश्क कीजिये फिर समझिये, ज़िन्दगी क्या चीज़ है
साब, एक वकील थे, कुछ परेशां, थके से हारे से। खैर इसको छोड़िए।

जादूगर जी एक बार सड़वा-जुलुम सरीखे आयोजन, यही अपने इस रेगिस्तानी राज्य में प्रशासन शहरों के संग- प्रशासन गावों से संग, सब नाम ही है, नामों का क्या? शहर से दूर थे, वे जहां ठहरे थे वहीं एक चूहे-बिल्ली का भागदौड़ होती रहती थी। थककर उन्होंने उस चूहे को बिल्ली बना दिया, अब चक्कलस बिल्ली-कुत्ते कि हो गयी, अब दिल्ली से लौटे तो यह वाकया देख जादूगर जी ने उसे कुत्ता, पर अब शेर उसके पीछे। अबकी लफड़ा खत्म करने को तबके चूहे को शेर ही बना दिया। सोचा, अब अपने को भी इस इलाके में दिक्कत न होगी, अब जब कई दिनों से लौटे तो वो शेर काट-खाने को दौड़ा। जादूगर ने पहले अपने को बचाया और फिर दिल्ली से सीखे गुर के जरिये, शेर को कुत्ता नहीं, बिल्ली नहीं-पुनर्मुषको भव, चूहा बना दिया।
कोई भी हो एक भवितव्य है, सही कहा है विलियम शेक्सपियर ने ज़िंदा कौमें पाँच साल इंतज़ार नहीं करती, आप-हम क्यों करे?
हमारा मतदान बेशक़ीमती है, ना?
आपने चुनाव में दारू नहीं पी, सच है?
आपने कोई प्रलोभन नहीं स्वीकारा?
बिना किसी लोभ-लालच के, तन-मन-धन से और मनसा-वाचा-कर्मणा भाव से आपने जिनका साथ दिया वो क्यों आपकी उपेक्षा करें?
चलों फिर एक बार प्रयाण गीत गायें, समवेत स्वर में दोहराएं-
सहते जाये - सहते जाये
ऐसा बल भी मत देना - ऐसा बल भी मत देना
उठ कर करने हैं कुछ काम रघुपति राघव राजा राम
रघुपति राघव राजा राम उठ कर करने हैं कुछ काम (सत्याग्रह)



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