हा हन्त नलिनीं गज उज्जहार (सियासत खेल चालू आहे)




दो अलग अलग बयानों को लेकर




कुछ सोचते हैं।
पहला सारे अपराध, रात में -अंधेरें में होते है, यह सच है। पर, एक सच यह भी है की आप अगर रात में सोने के दौरान सपने लेने की बजाय दिन में सपने ले रहे हैं। आपको क्या कहेंगे?


अरे हाँ, आप मायानगरी से है, तो आप का गुनगुनाना भी सहीं है की-
हमको जो ताने देते हैं, हम खोए हैं इन रंगरलियों में
हमने उनको भी छुप छुपके, आते देखा इन गलियों में
ये सच है झूठी बात नहीं, तुम बोलो ये सच है ना
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना
छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत ना जाए रैना
कुछ तो लोग कहेंगे ... चित्रपट - अमर प्रेम।

आप बीत न जाए रैना करते, गाते रहें और इधर वो शायर का लिखा सच हो गया।
रात भर इतना गिरा है पानी ।
की सुबह दिन निकला तो मकां ढह जाएगा जाएगा ।।


जनाब, आप घर के फूट में यह भूल गए की सेहरा यूँ ही तो किसी और के सर पर बंधने की गुस्ताफ़िया, सरअंजाम तक न जितने योग्य कैसे होने देंगे?

आपकी की इस गद्दीनशीनी के चक्कर में बारामती का मकान बेबजह ढह गया, "गए थे हरी भजन को ओटन लगे कपास" यह हाल तो आपने उनका किया। और आपका सपना भी शायद पीएम इन वेटिंग की तरह सीएम..... । पता नहीं क्यों ? पर यह सच साबित ही हो रहा है की जँह जँह पैर पड़े सन्तन के तँह तँह बंटाधार।



सत्ता की गणित में आप यह भी भूल गए की जो शख़्स कल तक स्वयंसेवक था, वो आपकी हर महत्वपूर्ण मीटिंग्स में शरीक है, भले ही बीड से धनञ्जय को टिकट न दी गयी हो, पर पंकजा हराने के उपरान्त, घर वापसी की बाँट जोह रहा, तकते उस अधीर युवा को आपने मौका भी दिया, साधन भी और उनको भी गिला-शिकवा दूर करने का अवसर।

आप या की सेना यह सब नहीं करती तो घर तो टूट ही जाता, हालांकि इसमें भी एक घर तो टुटा ही है। अब उनको भी शाम को लौटे हुए, सुबह के भूले……., अवसर भी आपने ही तो दिया।

अब, वो अन्दर आपके साथ बैठ, मूल के साथ ब्याज भी लेकर लौटेंगे, यह तो नागपुर ने भी नहीं सोचा होगा।

छत्रपति के राज्य में तानाजी की रणनीति को आपको पढ़ना होगा, महाराष्ट्र का इतिहास स्वयं में बहुत कुछ-सब कुछ है। बस बात यह है की आप जो समय गंवाने में लगते है वो पाने में।

माता जीजीबाई की सीख़ सदा ही इस बात को लेकर रहती थी की वक़्त इंतज़ार नहीं करता सो उसको इंतज़ार करवाने के बाद आप केवल प्रतीक्षा सूची में ही रह जाते है।

साल 2013 में तुळजा भवानी मन्दिर को जाने का मौका मिला था, वहां उच्च शिखर पर दर्शन के बाद, छत्रपति को लौटने के लिए आपकी भाषा में कहूं तो रैम्प सा बनाया गया है, ताकि आज्ञा के बाद युद्ध प्रयाण में उनका समय व्यतीत न हो, यह जीजा की रणनीतिक अभियानों का हिस्सा भर है।


समय निकालिये, मिले तो इतिहास के इन यथार्थ स्मारकों को जाईये, बजाय तोड़ कर बनाये ध्वंशावशेष को तकते रहने के।

अभी भी एक शख़्स कह रहें है की - उपमुख्यमन्त्री उनके साथ आ रहे है। दिबांग को आप लोगों ने टीवी में देखा होगा तो आपको सब खेल समझ में आ ही जाएगा। कह, केन्द्र में तथाकथित विपक्ष के बड़े नेता भी यही रहें है।

जबाब तो उनके पास भी नहीं है, जो महायुति को असमान गठबन्धन बता रहे है। साब, आप अब तक इन्हीं उपमुख्यमन्त्री जी को लेकर पुरे मराठवाड़ा में हड़कम्प मचाये थे। चक्की पीसिंग, पीसिंग यहीं था न शोले का डायलॉग।

वैसे भी ब्रम्ह मुहूर्त या कहें की उषाकाल में भारत के आधुनिक इतिहास में पहली बार कोई सरकार बनीं है, बाकी आजकल सब ही तो निशाचरों की भाँति ही हो, कर रहे हैं।

इस युति में एक तरफ पार्टी विधायक दल के नेता ख़ुद सरकार के साथ है, दूसरे वे जो पार्टी को अभी भी अपनी क़ब्जाशुदा सम्पत्ति मान कर मानो, बेपनाह चिन्ता से मुक्त है। मीडिया नेता-पुत्री को खुश बता रहें है, मानो लफड़ा मिटा, पिण्ड छूटा। वे, वो चलचित्र बार-बार दिखा भी रहे हैं, जिसमें वो मातोश्री से आये, मेहमान की अगवानी करती नज़र आ रही थी।

वैसे, एक मेरे अपने कुछ सवाल है, क्यों? देश को वास्तव में चुनी हुई सरकार की जरुरत भी है ?
देश में असन्तुलित कहा जाने वाला राज्य जम्मू और कश्मीर, जहाँ पिछले, तक़रीबन सोलह महीने से पहले राज्यपाल और अब एलजी ही सर्वस्व है। दूसरा भारत की व्यावसायिक राजधानी और औद्योगिक राज्य महाराष्ट्र में पिछले एक महीने से बिना लोक-जनमत से चुनी सरकार के राज्य का सारा प्रबन्ध, व्यवस्था बड़े ही अच्छे से चल ही तो रहे थे।

अब बताईये की मेरा प्रश्न, किसी के भी मन में यह बात क्यों न आएं ?

सबको फ़िक्र महाराष्ट्र की है, किसानों की है। सब ही लोकसेवक है। कहीं एक और त्रिभुज बनकर भी उसके कोणों को तिकोना बनाये रखने की जद्दोजहद थी।

सोचिये, पिछले कितने ही दिनों से सब, बंटवारे को लेकर ही शङ्का और ज्यादा पाने के जुगाड़ में थे, जी थोड़ा संशोधन कर लेते है की कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बना रहे थे, मानो यह भी बीरबल की खिचड़ी की तरह हो, हाँ यह भी की उसके पकने-पकाने में भी कोई सन्देश अन्तर्निहित है। तो सत्तर के दशक के ये साब बीरबल है या की उनके आलोचक, इससे ही आगामी जन्मदिन की खबरे भरी होगी।

वर्तमान महाभारत के संजय यह जानलें की महाराजा शिवाजी का राज्याभिषेक अल-सुबह, सूर्योदय के साथ-साथ ही हुआ था। अगर वे दिन के सूरज की प्रतीक्षा करते रहते तो शाइस्ता खाँ को हराना ही मुश्किल था। शिवराज विजय में अम्बिकादत्त व्यास कुछ इस तरह लिखते हैं की -

रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्री:।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे
हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार।।

एक भौंरा था । वह घूमते-घूमते कमलमें जा बैठा । सुगन्ध आ रही थी खूब । इधर सूर्य अस्त हो गया तो कमल बन्द हो गया । उसमें भौंरा विचार करता है कि हम बन्द हो गये अब । इसमेंसे निकलें कैसे ? कमलको कैसे काटें ? भौंरा बाँसको काट देता है । बाँसमें छेद कर देता है । उसमें छेद बनाकर बच्चे देता है और भीतर रहता है । आप विचार करो, कमलकी पंखुड़ी काटनेमें उसे जोर आता है क्या ? परन्तु उससे सुगन्ध लेता है तो अब काटे कैसे ? वह भौंरा सोचता है‒‘रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम् ।’ रात चली जायगी, बड़ा सुन्दर प्रभात हो जायगा । ‘भास्वानुदेष्यति’ सूर्य भगवान् उदय होंगे और ‘हसिष्यति पंकजश्रीः’‒यह कमलकी शोभा खिल जायगी । फिर मर्जी आवे जहाँ बैठें, मर्जी आवे जहाँ जावें । फिर ठीक हो जायगा । ‘इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे’‒वह बेचारा विचार कर रहा है कि यह हो जायगा, यह हो जायगा । इतनेमें ही हाथी आता है । पानी पीता है, फिर सूँडसे कमलोंको ऐसे लपेटता है । उतनेमें वह तो मर जाता है । ‘हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार’‒ऐसे ही मनुष्य कहता है, ऐसे करेंगे, ऐसे करेंगे । क्या करेंगे ?


पुणे स्थित शिवाजी के लाल महल के कब्जायें बैठे दुश्मन, बादशाह औरंगजेब एक अनुभवी सेनापति शाइस्ता खाँ के नेतृत्व में शक्तिशाली सेना को मध्यरात्रि-उषाकाल में ही दफ़न किया, तो सेना के सिपलसार महाराष्ट्र के इतिहास को नहीं जानते?

और इन्हीं के ट्वीट को ले तो, रिजल्ट के बाद, मुख्यमंत्री के जिद्द में एक कार्टून था, जिसमें शेर के गले में सुशोभित घड़ी और हाथ में कमल था। वो घड़ी ही आख़िर गले की घण्टी साबित हुई।

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