लोकतन्त्र और चौथा स्तम्भ Democracy & Fourth Piller


 जनवरी के बेसब्र सर्दी में, ठण्डक में दुबके लोगों से अलग जाकर छुट्टी अलग, बिना धुप और बादलों से घिरे इस खास दिन थी, बहस गरमागरम लोकतन्त्र, मीडिया और उस पर तीखें तंज कसने के मौके की। 

लल्लनटॉप की भाषा में कहूं तो साल 2018 की कड़कड़ाती सर्दी में मैं सौरभ द्विवेदी, आपके सामने हूँ, कुछ खास, बेबाक और दुनिया की नहीं, दिल की बात करने, मीडिया के छात्रों के साथ, मीडिया फाउंडेशन का शुक्रिया अदा करते हुए, बेहद ख़ास पल हैं, क्योंकि सवालों के घेरे में खड़ा एक पत्रकार और साथ में मीडिया धर्म से जुड़े 200 से अधिक सजग युवा। 

उनके साथ थे, तत्कालीन संभागीय अधिकारी और समाज-संस्कृति-साहित्य से जुड़े प्रतिभाशाली राजेश्वर सिंह, कुल मिलाकर वाराणसी के आस-पास की दो अपने-अपने क्षेत्र की दो शख्सियत। 


समय तो आधे दिन का ही मुक़र्रर हुआ था, शुरुवात में तदनुसार ही गति बनी, पर जब सवाल जारी थे तो जबाब से आनाकानी नहीं हुई, सुबह की ग्यारह से शाम की पाँच एक पिक्चर सी गुजर गई। 

सम्पादक, प्रकाशक, मालिक और संवाददाता से पाठक, एक्टिविस्ट और राजनेता-प्रशासनिक अधिकारी तक सब लपेटे में आये, उनकी मजबूरियां आड़े आयी, करने को बहुत कुछ हैं, मीडिया में यह सम्बल, विश्वास भी बढ़ा, फिर मिलने के वादे के साथ mediafoundation.co.in थोड़े विश्राम के बाद चल पड़ा फिर किसी मुहीम को, मानो जीवन में कहाँ विराम है। 

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