आपकी मंशा क्या है?



कुछ आपने किया तो हमने आपको सरमाथे रखा, एक बार नहीं दो बार सरे देश न प्रत्याशी देखा, न मैनिफेस्टो। आर्थिक बोझा भी झेला, पैट्रोल-डीजल-सब्जियां और घरेलु गैस तक सब, जो आपने कहाँ हमने मन-तन और धनाभाव में भी राष्ट्र आराधन की तरह स्वीकारा। जीएसटी हो की नॉट बंदी किसी में भी न व्यापारी बोलै न उपभोक्ता, आपने आयकर की छूट भी देना बंद के दिया, पर तब भी मध्यमवर्ग सह गया। आपने आरक्षण को तार्किक करने की बजाय, न्यायालयों के निर्णय पर संसद की सर्वोच्चता कायम की, तब भी।
आपका गुजरात से स्नेह अच्छा है, पर आपने बाकी को कई बार वंचित सा रखा तो भी, स्वीकारा। जापान-चीन-रूस और अमेरिका सभी राष्ट्राध्यक्षों की मेहमान-नवाज़ी आपने गुजरात में ही क्यों की, मेरा राजस्थान शायद गुजरात सा शहरी नहीं हो, चकाचौंध भी न हो तो, भी अतिथि सत्कार में हम पीछे नहीं रहते, राजस्थान ही क्यों पूर्वोत्तर हो की दक्षिण या की मध्यभारत आप जैसे सर्वशक्तिमान के लिए तो कहीं भी कोई भी आयोजन-व्यवस्था मुश्किल है ही नहीं, सबने यही तो कहा था, है की मोदी है तो मुमकिन है, फिर आपने बाकि को मौका क्यों नहीं दिया, या लायक नहीं मन,या आपका राज्य-मोह सब पर हावी रहा।
सब स्वीकारते हुए, आपके कार्यों की दिशा को देखने पर, हम तत्कालीन दशा को लेकर चुप्पी साढ़े रहें, क्योंकि यह प्रचारित किया गया की फिर विकल्प कौन होगा, नहीं?


हाँ, आपने ट्रिपल तलाक के माध्यम से असमानता को रोका, आपने अयोध्या को बखूबी निर्णीत करवाया और आपने कश्मीर की 370 से भी परित्राण दिलाया, लदाख की अपना जीवन दिया।


पता नहीं कितने लोग जानते है याकि नहीं, पर आपकी इस साल की कश्मीर नीति अब पुनः पिछले दरवाजे से 370 की आहात देने लगी है, आप जिनको खुश करना चाहते है, वे उनकी तृष्णा-उनकी भभक उनका बहशीपन कोई खत्म नहीं कर पायेगा। किनको आप मुख्यधारा में लाना चाहते है, उनको जिनकी धारणा बदलना संभव ही नहीं।


डोमिसाइल का आपका यह निर्णय, फिर वो ताबीर रख रहा है, जहाँ से 05 अगस्त को जगी आशा फिर दम तोड़ने लगी है,
जो भी तस्वीर बनाता हूँ
बिगड़ जाती है
देखते-देखते दुनिया ही
उजड़ जाती है
मेरी कश्ती तेरा तूफ़ान
से वादा क्या है
ज़िन्दगी और बता ...


जब शेष भारत में कहीं भी कश्मीरी युवाओं के लिए सबतरह से द्वार खुले है, शिक्षा-चिकित्सा-रोजगार-रहने-बसने के तमाम अधिकार, फिर आप पीडियों से स्वप्न पाले  शेष भारत को कश्मीर आने से क्यों रोकने को उद्यत है, आपकी यह खुश करने की यह मानसिकता पुनः बेड़ियों को सहेजने का काम करेगी, सावचेत हो जाईये।


जम्मू कश्मीर में नौकरियों में डोमिसाइल, पिछले पन्द्रह साल का प्रोविजन क्यों? जब 370 और 35 A को संसद ने ध्वनिमत से स्वीकार लिया फिर अंदरखाने से, लोकडाउन के वक़्त मेरा मिला हक़ सहसा आपने क्यों छीन लिया?
चलों मुझे नज़रअंदाज़ करदो, मैं अवसर बनाने की कोशिस करूँगा, पर, पर उनको? जो देश के विभाजन से नब्बे के दशक तक अत्याचार-बलात्कार-बलवा-दंगे की चपेट में रहकर भी भारत माता की जय, कश्मीर भारत का अट्टु हिस्सा है, हरदम कहता रहा, कटता रहा, उन कश्मीरी पण्डितों की मर्मान्तक पीड़ा को आप, एकदम से भूल गए, आपका यह शमसान वैराग्य, उनके प्रति सहानुभूति को ऐसे लील लेगा, सच मैं स्तब्ध हूँ।

अभिज्ञानशाकुंतलम में एक अन्य प्रसंग में ऋषि कण्व कन्या को विदा करने में यही कहते हैं की मुझ सन्यासी को इतनी पीड़ा है तो गृहस्थ कैसे अपने घर से ईद विदाई को  होंगे,
कंठ: स्तम्भित बाष्पवृत्तिकलुषः चिन्ताजडं दर्शनम् ।
वैक्लव्यं मम तावदीदृशमहो स्नेहादरण्यौकसः
पीड्यन्ते गृहिणः कथं नु तनया विश्लेष दु:खैर्नवैः ॥
तो वो जो जिन्होंने सुना था की अपना घर छोड़ रावण हो जाओ, अपनी बहन-बेटियों को साथ ले जाने की कवायद मत करना और ......आदि आदि। न केवल सुना अपितु लाचारी में वो सब देखा, केवल पीड़ा और दंश में जीता वो बचपन युवा हुआ, तबका युवा आज उम्र के पड़ाव में, सबको एक आशा दे यकायक आप फिर उसी यातना, यन्त्रणा को मजबूर कर दोगे, नरेन्द्र तुमसे यह अपेक्षा न थी?


एक हसरत थी कि आँचल का, मुझे प्यार मिले
मैने मंज़िल को तलाशा, मुझे बाज़ार मिले
ज़िन्दगी और बता, ज़िन्दगी और बता,
इरादा क्या है, एक हसरत थी ...
बेशक, इस आपद्काल काल में आप दूरदर्शन के जरिये महाभारत दिखा रहें हो, देश को आपसे यह अपेक्षा थी की आप कृष्ण की भूमिका में रहोगे, तटस्थ नहीं, असत्य को ख़त्म कर तमसो मा ज्योतिर्गमय की दिशा में बढ़ोगे, पर अफ़सोस की तुम खुद इस नाटक में किरदार कृष्ण का चुन बैठे और भूमिका-सम्वाद अर्जुन के?  मैं कृष्ण को कहाँ ढूँढू? कहाँ पाञ्चजन्य का उद्घोषक? तुम हथियार नहीं उठाने की की शर्त को पहले ही दे चुके थे, पर क्या तुम केवल सारथी भर हो? प्रेरणा-प्रेरक हो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल को आपसे ज्यादा कौन समझा सकेगा, वैसे भी वो आपकी कौनसी बात टालने की मुद्रा में है? उनका सक्षम होना, सर्वं होना यह सब ताकत आपके अंतर्गत ही तो है, नहीं? फिर


और यह कौनसी विश्वसनीयता का पक्ष होगा की जो आज नौकरी में डोमिसाइल लगा वो कल, शिक्षा में नहीं होगा? वो शेष भारतियों को वहां रहने-बसने-सम्पत्ति को खरिदने-क्रय करने से नहीं रोकेगा? आप मौन में सब गोलमाल कर देते हो और मन की बात में बहुत कुछ, फिर क्यों ? यह सब योगासन की विभिन्न मुद्राएँ?


नागरिकता रजिस्टर की तरह .........को छोड़ शेष कश्मीर में अल्पसंख्यकों को आप 1947 से न मानों तो भी 1990 से स्वीकारों, और वे जब चाहे घाटी में लौटे तो उनके लिए घर के दरवाजें सदा-सर्वदा के लिए खुले क्यों न हों? और यह सब ग्रांडफादर के मूल निवासी होने के साबुत से ही पर्याप्त क्यों न किये जाएँ? बहुसंख्यक तो आज भी वहीँ हैं, अल्पसंख्यक कश्मीरी पण्डित-डोगरा-गुर्जर और सरदार को उनसे छीनी जमीं, अस्मत लौटने का अवसर भारत ने आपको दिया आप!!!, आप!!!
….….”निमित्त मात्र भाव सव्यसाचिन्”।


वो गोली मारेंगे, हम दवा देंगे, वाह तेरी मानवता।
और यह कैसी?

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